बलिया के मिश्रा जी और गोरखपुर के भट्ट साहब की जय-जयकार
इंडिया इमोशंस, लखनऊ। कोरोना की तूफान बन आयी दूसरी लहर के बीच तीसरी लहर आने की आशंका ने भले हमें बेचैन कर रखा हो पर इस महामारी की काट बन कर आयी 2-डीजी दवा सुखद भविष्य का संकेत लेकर आयी है। भयग्रस्त देश को भविष्य की सुखद तस्वीर दिखाने वालों में अपने बलिया के मिश्रा जी और गोरखपुर के भट्ट साहब की भूमिका खास है। डीआरडीओ यानि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन से तैयार इस दवा के निर्माण में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और बलिया में रहने वाले वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। खास तो यह है कि यूपी के इन वैज्ञानिकों की न केवल पारिवारिक पृष्ठभूमि जमीन से जुड़ी हुई है बल्कि प्रारंभिक शिक्षा भी किसी कॉन्वेंट या हाई-फाई माहौल वाली नहीं है।
कोरोना की रामबाण मानी जाने वाली दवा बनाने वालों में डॉ. अनिल मिश्रा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के हैं। 2-डीजी दवा को बनाने में इनकी अहम भूमिका है। श्री मिश्रा ने 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से एमएससी किया है। उन्होंने 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से केमिस्ट्री में पीएचडी की। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वह पोस्टडॉक्टोरल फैलो रहे हैं। अनिल मिश्रा 1997 में बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ के न्यूक्लियर मिडिसिन एंड अलायड साइंसेज से जुड़े थे।
फिलवक्त वह संगठन के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में सेवाएं दे रहे हैं। जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में वह 2002 से 2003 तक विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। कोरोना की दवा बनाने वालों में उनका नाम शामिल होने की खबर आते ही उन्हें बधाई देेने वालों का तांता लगा हुआ है। बलिया के लोग श्री मिश्रा की उपलब्धि पर गौरवान्वित हैं।
उत्तर प्रदेश के ही गोरखपुर जिले के गगहा से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने वाले डीआरडीओ वैज्ञानिक अनंत नारायण भट्ट गोरखपुर या पूर्वांचल के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए गौरव का विषय बन चुके हैं। अनंत नारायण डीआरडीओ के न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलायड साइंसेज में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने ने अपनी माध्यमिक शिक्षा गगहा के किसान इंटर कॉलेज और बीएससी किसान पीजी कॉलेज से की है।
वहीं, अवध विश्विद्यालय से एमएससी बायोकेमेस्ट्री से करने के बाद पीएचडी करने के लिए सीडीआरआई लखनऊ में रजिस्ट्रेशन कराया। यहां ड्रग डेवलपमेंट विषय में रिसर्च कंप्लीट कर पीएचडी पूरा की। इसके बाद बतौर साइंटिस्ट डीआरडीओ में नौकरी मिल गई।
गौरतलब है कि, डीआरडीओ की यह दवा ऐसे समय में आई है जब कोरोना की तीसरी लहर की बात हो रही है। वहीं, देशभर में ऑक्सिजन की किल्लत भी बनी हुई है। दूसरी लहर से रेकॉर्ड मौतें हो रही हैं और स्वास्थ्य संसाधनों पर भारी दबाव है। राहत का पहलू यह है कि 2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है और इसे पानी में घोल कर पीना होता है।
मालूम हो कि, 2-डीजी दवा से कोरोना के मरीज तेजी से रिकवर होते हैं। यह मरीजों की ऑक्सिजन पर निर्भरता को कम करती है। डीआरडीओ को काफी कोशिशों के बाद इस दवा को बनाने में कामयाबी मिली है। इसमें कई डॉक्टरों का दिमाग लगा है।
इन्हीं में एक हिसार के सुधीर चांदना भी हंै। वह डीआरडीओ में एडिशनल डायरेक्टर हैं। उनके पिता जेडी चांदना जिला और सत्र न्यायाधीश रहे हैं। नौकरी में पिता का ट्रांसफर होने के कारण सुधीर की शुरुआती शिक्षा भिवानी, बहादुरगढ़, पानीपत, करनाल और हांसी के स्कूलों में हुई। 1987-89 में उन्होंने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से माइक्रोबायलॉजी में एमएससी की। पीएचडी के दौरान बतौर वैज्ञानिक वह डीआरडीओ से जुड़े।